
नृसिंह अवतार का मेला कल
नागौर। भक्त प्रहलाद को दुष्ट हिरण्यकष्यपु से बचाने के भगवान ने नृसिंह अवतार लिया और एक खम्भे से प्रकट होकर अपने भक्त के प्राणों की रक्षा की थी। भगवान के इसी रूप को प्रतिवर्ष शहर के बंशीवाला मन्दिर में बड़ी धूमधाम व श्रृद्धा से मनाया जाता है। इससे पहले नृसिंह अवतार का स्वरूप भक्तों के दर्शनों के लिए निज मन्दिर में रख दिया जाता है। कहते है नृसिंह अवतार का स्वरूप धारण करने वाले भाग्यशाली भक्त को इस आयोजन के लगभग एक माह पहले से विशेष तैयारी करनी होती है। इसके तहत कुछ अति विशिष्ट अनुशासन का पालन करना जरूरी होता है।


इस दौरान भक्त के लिए बिस्तर पर सोना वर्जित होता है। साधारण भोजन करना, किसी प्रकार का कोई भी व्यसन नहीं करना, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना, प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करना, जमीन पर या चटाई पर शयन करना जैसे कई कठोर नियमों का पालन करते हुए भगवान के आदेश की प्रतीक्षा करनी होती है। क्योंकि इन नियमों की पालना तो तीन चार या पांच भक्त करते है परन्तु जिस पर भगवान की विशेष कृपा होती है उसी को भगवान का स्वरूप धारण करने का सुअवसर प्राप्त होता है।
इस दिन शाम को करीब 4 बजे शहर के काठड़िया चौक स्थित बंशीवाला मन्दिर का प्रांगण खचाखच भर जाता है। निज मन्दिर में भक्त को भगवान का स्वरूप विषेशज्ञों की देखरेख में विधिविधान से मंत्रौच्चार के साथ धारण करवाया जाता है। इस दौरान नगाड़े व झालर निरन्तर बजते रहते है। फिर भगवान नृसिंह निज मन्दिर के बाहर आकर भक्त प्रहलाद को पापी हिरण्यकष्यपु के हाथों से बचाते है और फिर आरम्भ होता है नृसिंह भगवान का भव्य नृत्य। अवतार स्वरूप में यह पारम्परिक नृत्य मन्दिर के सालों पुराने नियमों के अनुसार तय स्थानों पर होता है। जिससे कि दर्शन को आए किसी भी भक्त को अवतार के स्वरूप के दर्शनों से वंचित न रहना पड़े।
प्रचण्ड गर्मी की भीषण मार यानि मई-जून के माह में यह पर्व मनाया जाता है। भगवान के स्वरूप को धारण करने वाले भक्त को हर पल सहयोगी विषेशज्ञ हाथों में पंखी, अखबार या अन्य हवा करने का कोई साधन लेते हुए निरन्तर हवा करते रहते है। ऐसा माना जाता है कि स्वरूप को धारण करने से पहले भक्त को सामान्य रूप से लगने वाली गर्मी से ज्यादा गर्मी लगती है। इसलिए उसे ज्यादा और लगातार हवा की जरूरत होती है।
सदियों से यह पर्व शहर के अति प्राचीन मन्दिर बंशीवाला मंदिर में मनाया जाता रहा है। लेकिन हाल ही कुछ वर्षो से यह त्योंहार अब गली गली और चौक चौक मनाया जाने लगा है। भगवान नृसिंह के अवतार से पहले मलूके का वेश धारण करके छोटे छोटे बच्चे गलियों , मोहल्लों में घूमते दिखाई दे जाते है। मस्तक पर चन्दन का लेप , हाथों में नगाड़े के डंडे और पीतल की झालरें और मस्त मुद्राओं में नृत्य की भावभंगिमाओं को देखते ही एक अद्भुत भावानुभूति होती है।
फेसबुक पेज न्यूजइनसाइड7 पर मेले का लाईव दिखाया जाएगा।

Author: News Inside 7

